मेरी वफा फरेब थी मेरी वफा पे खाक डाल ।
तुझसा ही कोई बावफा तुझको मिले खुदा करे।
मिल ही जाएगा कोई ना कोई टूट के चाहने वाला,
अब शहर का शहर तो बेवफा हो नहीं सकता।
ज़ज़बात पे क़ाबू वो भी मोहब्बत में ,., तूफ़ान से कहते हो चुपचाप गुज़र जाओ ,.,!!
मोहब्बत से भरी कोई ग़ज़ल उसे पसंद नहीं,
बेवफाई के हर शेर पे वो दाद दिया करते हैं।
आख़िर तुम भी आइने की तरह ही निकले,
जो भी सामने आया तुम उसी के हो गए।
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