न किसी के दिल की हूँ आरजू,
न किसी नजर की हूँ जुस्तजू,
मैं वो फूल हूँ जो उदास है,
न बहार आए तो क्या करूँ।
किस फिक्र किस ख्याल में खोया हुआ सा है,
दिल आज तेरी याद को भूला हुआ सा है,
गुलशन में इस तरह कब आई थी बहार
हर फूल अपनी शाख से टूटा हुआ सा है।
अजीब रंग का मौसम चला है कुछ दिन से,
नजर पे बोझ है और दिल खफा है कुछ दिन से,
वो और था जिसे तू जानता था बरसों से,
मैं और हूँ जिसे तू मिल रहा है कुछ दिन से।
नसीब बनकर कोई ज़िन्दगी में आता है,
फिर ख्वाब बनकर आँखों में समा जाता है,
यकीन दिलाता है कि वो हमारा ही है,
फिर न जाने क्यूँ वक़्त के साथ बदल जाता है।
उतना हसीन फिर कोई लम्हा नहीं मिला,
तेरे जाने के बाद कोई भी तुझ सा नहीं मिला,
सोचा करूँ मैं एक दिन खुद से ही गुफ्तगू,
लेकिन कभी मैं खुद को तन्हा नहीं मिला।
तुमने तो कह दिया कि मोहब्बत नहीं मिली,
मुझको तो ये कहने की भी मोहलत नहीं मिली,
तुझको तो खैर शहर के लोगों का खौफ था,
और मुझको अपने घर से इजाज़त नहीं मिली।
हम तो मौजूद थे रात में उजालों की तरह,
लोग निकले ही नहीं ढूढ़ने वालों की तरह,
दिल तो क्या हम रूह में भी उतर जाते,
तुमने चाहा ही नहीं चाहने वालों की तरह।
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