सपनों से दिल लगाने की आदत नहीं रही,
हर वक्त मुस्कुराने की आदत नहीं रही,
ये सोच के कि कोई मनाने नहीं आएगा,
अब हमको रूठ जाने की आदत नहीं रही।
प्यास दिल की बुझाने वो कभी आया भी नहीं,
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं,
बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी,
एक मुद्दत से हमें उसने सताया भी नहीं।
मुद्दत से थी किसी से मिलने की आरज़ू,
ख्वाहिश-ए-दीदार में सब कुछ गँवा दिया,
किसी ने दी खबर कि वो आयेंगे रात को,
इतना किया उजाला कि घर तक जला दिया।
न जाने क्यूँ वक़्त इस तरह गुजर जाता है,
जो वक़्त था वो पलट कर सामने आता है,
और जिस वक़्त को हम दिल से पाना चाहते हैं,
वो तो बस एक लम्हा बनकर बीत जाता है।
बहुत लहरों को पकड़ा डूबने वाले के हाथों ने,
यही बस एक दरिया का नजारा याद रहता है,
मैं किस तेजी से ज़िंदा हूँ मैं ये भूल जाता हूँ,
नहीं आना इस दुनिया में दोबारा याद रहता है।
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