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उस की आँखों में नज़र आता था
सारा जहाँ मुझ को,
अफ़सोस उन आँखों में कभी
खुद को नहीं देखा मैंने।
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उस घड़ी देखो उनका आलम
नींद से जब हों बोझल आँखें,
कौन मेरी नजर में समाये
देखी हैं मैंने तुम्हारी आँखें।
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तुम्हीं कहते थे कि यह मसले
नजर मिलने से सुलझेंगे,
नजर की बात है तो फिर
यह लब खामोश रहने दो।
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अगर कुछ सीखना ही है,
तो आँखों को पढ़ना सीख लो,
वरना लफ़्ज़ों के मतलब तो,
हजारों निकाल लेते है।
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जाने क्यों डूब जाता हूँ हर बार इन्हें देख कर,
इक दरिया हैं या पूरा समंदर हैं तेरी आँखें।
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निगाहों से कत्ल कर दे न हो तकलीफ दोनों को,
तुझे खंजर उठाने की मुझे गर्दन झुकाने की।
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