ढूंढ लेते तुम्हे हम, शहर कि भीड़ इतनी भी न थी..
पर रोक दी तलाश हमने क्योंकि तुम खोये नहीं बदल गए थे….
थक सा गया है मेरी चाहतों का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे तो… इज़हार नहीं करता !!
रोज़-रोज़ जलते हैं, फिर भी खाक़ न हुएं,
अजीब हैं कुछ ख़्वाब भी,
बुझ कर भी राख़ न हुएं।
हज़ार बातें कहें लोग,
तुम मेरी वफ़ा पर यकीन रखना…!
बहुत करीब से अनजान बनकर गुजरा है वो,
जो बहुत दूर से पहचान लिया करता था कभी..
ये जो तुमने ख़ुद को बदला है ..
ये बदला है या “बदला” है!!
कोई सुलह करा दें ज़िंदगी की उलझनों से…
बड़ी तलब लगी हैं आज मुसकुराने की.
कुछ ज़ख्म सदियों के बाद भी ताज़ा रहते हैं फ़राज़..
वक़्त के पास भी हर मर्ज़ की दवा नहीं होती…
मेरी यादों की कश्ती उस समुन्दर में तैरती है,
जहां पानी सिर्फ और सिर्फ मेरी आँखों का होता है…
हिम्मत इतनी थी समुन्दर भी पार कर सकते थे,
मजबूर इतने हुए कि दो बूंद आँसूओं ने डुबो दिया।
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